Thursday 15 December 2011




चुपके से यु उस का मुझ से दूर चले जाना
पीछे उस के सवाल हज़ार छोड़ गया

न आया पसंद उसे वफ़ा का चलन
एक जरा सी बात पर इतना बवाल छोड़ गया
कौन रोक सका है किसी की बिदाई का क्षण
वापसी की राह में लेकिन ये कैसा मलाल छोड़ गया

Friday 2 December 2011





शाम के डूबते सूरज के साथ हर रोज
दिल में मेरे एक दस्तक सी देता जाने कौन है

थक के निढाल हो जाता हु जब दिन भर की थकन से
ठंडी पुरवाई सा मेरे रूह के आप पास जाने चलता कौन है
काली सर्द रातो में जब ठिठुर सा जाता हु
चादर सा मेरे रूह पर बिछ जाता जाने कौन है
खवाब में पा कर उसे जब धड़कता है तेज दिल मेरा बार बार
मेरे सीने में अपना सर रख मेरी धड़कनों को सुनता जाने कौन है
सुबह को जब होता हु मैं नींद के आगोश में
बालो में मेरे उगंलिया सी फेर कर जाने उठाता मुझे कौन है
दिन की आपा धापी में हो जाता हु मैं मशगुल बहुत
हर कदम से कदम मिला कर साथ मेरे जाने चलता कौन है
वो तो चली गई थी कभी मुझ से बहुत दूर कही .
फिर भी उस सा मेरे दिल में जाने ये धड़कता कौन है

Wednesday 28 September 2011






एक अरसा हुआ खुद को हसते हुए देखे 
चलो आज बचपन के कुछ खेल खेले हम 

जमाना बदल गया पर दस्तूर अब भी वही तो पुराना है
चलो आज किसी से रूठे .और किसी रूठे हुए को मना ले हम 

कुरेद के दिल के जख्मो को अब जान लो कुछ न होगा
आओ कुछ खेल खेले बचपन के  और जख्मो को सी ले हम 

टूटे खिलौना कोई और बच्चे का मचल कर रोना
चलो आज दिल के कुछ दाग यु ही धो ले हम

Tuesday 27 September 2011







जो भगत सिंह माँ भारती के गौरव के लिए हसते हसते फासी में चढ़ गए
आज देख माँ भारती की दुर्दशा मेरे सपने में आकर फूट फूट कर रोते है

................

मत देखो मेरी ओर
अपनी यु नम आँखों से
क्यों की नहीं है मेरे पास
भगत सिंह तुम्हारे सवालो का कोई जवाब

रक्त प्रवाहित है अब भी मेरी रगों में
प्राण अभी भी है शेष
फिर क्या कहू तुम से
ये तुम्हारी जयंती मनाना
यु माला पहना कर तुम्हारा महिमा मंडन
जानता हु ये तो नहीं था कभी तुम्हारा उद्देश्य

क्या करू इस देश में अब भी
भाषा गाँधी वाद की कायरता है
वन्दे मातरम अब सांप्रदायिक बना देश में
हिन्दुओ पर छाई धर्मनिरपेक्षता की काली छाया है
विदेशियों का नमक खाने वाले लोगो ने
सारे देश में अब सत्याग्रह का जाल फैलाया है

भगत सिंह मैं क्या जवाब दू तुम को
मौन हु ....आँखों में आंसू है ....हाथ काप रहे क्रोध से ...
फिर भी माँ भारती का गौरव अब तक
हम ने कहा लौटाया है .........


 

Sunday 18 September 2011

बेटिया

बेटिया
बीज की तरह ही तो होती है

१..........
चाहिए उन्हें भी विश्वास की थोड़ी सी जमीन
लाड दुलार की थोड़ी सी फुहार
खाद थोड़ी सी शिक्षा की ......
फिर देखो कैसे लहरा सी जाती है
तैयार सतत .........
समाज घर परिवार के
पोषण को ............

२...................
पिस जाती है कभी
रीती रिवाज के पाटो में
व्यग्तिगत स्वार्थ और लालच ने
दल दिया है उन को अक्सर ही
और खो देती है सम्भावनाये असीम
अपने को साबित करने की

Saturday 13 August 2011

आजादी

आजादी 
काश तुम सूरज होती 
तो जा सकती थी हर घर आँगन में ...

आजादी 
काश तुम वायु होती 
होती सचारित हर जीवन में

आजादी 
काश तुम  जल होती 
बहती निश्छल निष्कपट गंगा के जल में 

आजादी 
काश तुम आकाश होती 
झिलमिल तारो की छत होती हर जन गन मन  में 

आजादी 
काश तुम अग्नी होती 
बन कर लौ दीप की जलती मंदिर महल कुटिया में 

आजादी 
काश तुम कैद न होती 
संसद भवन  के गलियारों में 

Sunday 7 August 2011

सुबह उठा आज मैं 
तो जाने क्यों मेरे बदन से 
एक खुशबु सी उठी
सोचा रात का मंजर
उस का नींद के साथ 
चुपके से मेरी आँखों में समाना
वो हसीन पल 
जिस के कभी हम ने ख्वाब देखे थे
आज उस ख्वाब का ख्वाब में ही
हकीकत बन जाना 
आज ही जान पाया हु मैं 
सुबह इतनी भी खुबसूरत होती है 
महक रहा है मेरा तन - मन अभी भी ..............

Saturday 6 August 2011

फैसला कब दुआए करती है

क्या यकीं करू मैं तेरी दुआओं के असर पर
होता अगर असर तो तू दुआ ही क्यों  करती 

जिन्दगी तो कुछ होती ही है सफ़र की तरह
कभी झरने से बहती है .कभी शिखर पर चढ़ती  है 

ख्वाबो की नजाकत को भी तू देख 
ये बद्दुआओ से भी ये बिखरते है 

ये तेरा भरम भी मुझे बहुत मजबूत सा करता है 
डरता हु तू टूट न जाये कही आंसू मेरे  देख कर 

तू लाख रख यकी अपनी दुआओं  पर 
पर भूल मत के फैसले  कब दुआए करती है

Thursday 4 August 2011

नसीब भी उस का कुछ अजीब था .....

खोने और पाने का खेल तो देखो.....
उस  ने वो खोया जो सिर्फ उस का ही था .
और मैंने वो खोया जो मेरा कभी हो न सका

उस ने कहा था खुश रहा करो ......
अपने एक वादे पर अटल मैं हसता ही रहा 
और वो  मुझे आज खुश देख कर भी खुश हो न सका 

इतना तो यकी मुझे भी था अपनी मोहब्बत पर
कहते थे नज़रे घुमा....चले जायेंगे एक दिन बहुत दूर तुम से 
रास्ते में एक बार मिला तो मुह अपना  मोड़ न सका 


नसीब भी उस का कुछ अजीब था .....
गया था जो बड़े गुरुर के साथ मुझ से दूर 
लौटा तो नज़रे मिला के कुछ बोल न सका 

Friday 22 July 2011

अब मेरी अपनी एक दुनिया है ..........

कितना आसान था 
माँ की गोद में सर रख 
आसमान की बाते करना

कितना आसान था 
पापा के संग बैठ कर
दुनिया के सैर की बाते करना

कितना आसान था 
बहन की नन्ही झोली में
चुन चुन कर फूलो को भरना

कितना आसान था 
भैया के संग दौड़ लगा कर
चाँद  तारो तक पहुच जाना 

पर अब आसान कुछ भी नहीं 
न जिन्दगी... न घर... न रिश्ते... 

टटोलती है माँ मेरी बुझती आँखों से  आकाश 
पापा मेरे सहारे चार कदम चलते है
बहन को राखी पर ही भेज पाता हु मनी आर्डर 
अब दौड़ कर भी तय नहीं कर पाता फासला भैया के घर तक ...

अब मेरी अपनी एक दुनिया है ..........

Saturday 9 July 2011

बिखरे से ख्वाब ..

जब कभी मैंने कही कुछ टूटे बिखरे से ख्वाब देखे 
ऐ जिन्दगी वही तेरे कदमो के निशा देखे 

समेट कर ख्वाबो को  सारे एक बच्चे की मानिंद 
जोड़ कर देखा तो बस खुद को मुस्कुराता पाया

जिन्दगी तू गर एक पहेली थी तो कोई तो तेरा हल भी होता
जब कभी सुलझाने बेठा तो खुद को और उलझता पाया 

माना  की नहीं रोक सकता गुजरते वक्त के कारवा 
कल को सवारने की कोशिश में आज को बिखरता पाया 

लोग कहते है मुझे तू निकल के यादो से बाहर भविष्य सवार ले 
क्या कहू दोस्त मैंने तो अपने माझी में ही  खुद को दफ़न पाया 

रोक न सका  उसे जाते हुए लम्हों की तरह 
डूबती हुई उस आवाज़ से खुद को भी डूबता  पाया

माना के बहुत खुबसूरत होती जिन्दगी साथ तेरे 
मुद्दतो बाद भी लेकिन तुझ को खुद में धड़कता पाया 

बदल कर रास्ता जिन्दगी का जब भी बढाया एक कदम 
क्यों होता है .हर बार सामने से मेरे उस का गुजर जाना 

मौत को मालूम है जिन्दगी की है यही फिदरत 
क्यों कर आती गर आसा होता यु सब कुछ बदल जाना 

 मेरे माझी ने मुझे  दिया है इतना तो अहसास 
शैलेश को तनहा तो किया ...हर बार उसे मुस्कुराता पाया 

Thursday 7 July 2011

आओ कुछ दूर साथ चले...

आओ कुछ दूर साथ चले
कुछ कदम विचारो के 
कुछ कदम मन के
और एक कदम उस राह पर भी
जो गुजरती  हो दोनों के दिलो से हो कर

आओ मिल कर बाते करे हम दोनों
कुछ दिल की बाते 
कुछ प्यार की बाते
कुछ बाते ऐसी जिस के शब्द छलकते हो आँखों से 

छलकती आँखों से नम पड़ जाये शायद कुछ जमीन
और उभर आये निशान  मेरे दिल में तुम्हारे कदमो के
तुम्हारे दिल में मेरे कदमो  के ........

Wednesday 29 June 2011

काग तंत्र .....

दोस्तों अब कुछ दिन के लिए मैं एक कथा संग्रह लिखने की कोशिश करना चाहता हु जिस का शीर्षक होगा काग तंत्र .........

आप सभी के लिया आज पहला भाग
चालाक लोमड़ी

एक जंगल था ..जहा बहुत साल पहले बहुत से जानवर सुख पूर्वक रहते थे .....वहा की खुशहाली देख कर बाकि सारे जंगल की जानवरों को उस जंगल से ईष्या होती थी ..... जंगल में कुछ कुटिल चालक लोमड़िया रहती थी .. जंगल के सारे भोले भाले जानवरों को अपने जंगल प्रेम में फसा कर लोमडियो ने सारे जंगल पर राज करना शुरू कर दिया ...लोमड़िया चालाक और कुटिल थी तो धीरे धीरे और पास के जंगल से भी लोमडियो को ला कर बसाने लगी ......... लेकिन जंगल के भोले भाले जानवर उन की चालाकी समझ नहीं पाते ...

जंगल में कुछ समझदार जानवर भी रहते थे जो धीरे धीरे लोमडियो की चालाकी समझने लगे ....वक्त गुजरता गया और जंगल में एक बब्बर शेर आया ....... शेर अपने स्वाभाव गत राजा तो था ही लेकिन उस को जंगल के सारे जानवरों से प्यार भी था और वो जंगल के जनवारो की दुर्दशा समझने लगा ..... लेकिन चालक लोमडियो द्वारा जंगल के सारे भोले भले जानवरों को बहला कर अपने पास ही रखने लगी ...... समय गुजरता गया और शेर अपने जंगल के जानवरों के लिए व्यथित होने लगा और लोमडियो की चालाकी सारे भोले भाले जानवरों को समझाने निकल पड़ा .......और धीरे धीरे अब जंगल के जानवरों को भी शेर की बात समझ आने लगी की कैसी लोमड़ी अपना राज चलाने के लिए उन पर अन्याय करते हुए अपनी संख्या बड़ा रही है.

इस बीच शेर के जंगल में बदते प्रभाव और उस के स्वाभाविक गुण से लोमडियो को चिंता भी होने लगी ........ और कुछ लोमडियो ने मिल कर एक रणनीति बनाई ......

एक दुसरे जंगल से एक बड़े कद काठी के सियार को बुलाया गया और उसे शेर की खाल पहना कर शेर का रंग रूप दे कर जंगल में छोड़ दिया .......... वो बनाया गया शेर का नाम रखा बन्ना शेर ....अब बन्ना शेर भी पुरे जंगल में घुमने लगा और बब्बर शेर की राग में ही जंगल के हित की बाते और लोमडियो की कुछ चालाकियो की बाते करने लगा ........... जंगल के भोले भाले जानवर उस की बातो में भी आने लगे .......चुकी वो बन्ना शेर लोमडियो से तो मिला हुआ ही था तो जब भी बन्ना शेर लोमोडियो को डराता सारी लोमड़िया डरने का नाटक करती .....और फिर एक दिन बन्ना शेर जंगल के सारे भोले भाले जानवरों के हित की बात कर लोमडियो को दौड़ाने लगा और लोमडिया डर डर कर भागने का नाटक करती या फिर उस की सारे बाते मान लेने की बाते करती ......... इस से हुआ ये की बन्ना शेर ही जंगल के भोले भाले लोगो को असली शेर लगने लगा और बब्बर शेर को लोग किसी काम का नहीं समझ कर ........... बन्ना शेर के साथ होने लगे ...

धीरे धीरे बन्ना शेर जंगल के सारे समझदार बुजुर्ग जानवरों के खिलाप भी भोले भाले जानवरों को भड़काने लगा और जानवर भी उन के साथ साथ वही सोचने लगे ..........जंगल के भोले भाले जानवर अब अपने उपर हुए अत्याचारों को भूल कर बन्ना शेर को ही अपना आदर्श मानने लगे ......... और बन्ना शेर धीरे धीरे जगल के जिन समझदार जानवरों से डर था उन को भी ख़त्म करने की कोशिश करने लगा और बीच बीच में लोमडियो को भी डरता रहता ....

लेकिन लोमडियो का सब से बड़ा दुश्मन बब्बर शेर ......लेकिन सारी लोमडिया मिल कर भी एक बब्बर शेर का मुकाबला कर नहीं सकती थी .....तो लोमडियो ने उस पर धीरे धीरे हमला करना शुरू कर दिया ......... जो कोई समझदार जानवर बब्बर शेर की बाते सुनता या साथ देता उसे जंगल से बाहर निकलने की बाते करते और ये प्रचार करते की ये किसी और जंगल का जानवर है और जबरदस्ती हमारे जंगल में घुस आया है ... और लोमडिया अपने अन्य साथियों को बुला बुला के अपने जंगल में बसाने लगी .... वक्त गुजरता गया और जंगल के भोले भाले जानवर बब्बर शेर की बात बिना समझे बन्ना शेर के साथ रहते और वो जिस को गलत कहता आँख बंद कर के मान लेते .......

अब बन्ना शेर जंगल में अपनी पैठ बना चूका और अब खुल कर बब्बर शेर को ही ललकारने लगा और जब बब्बर शेर दह्ड़ता तो बन्ना शेर लोमडिया के पीछे दौड़ने लग जाता . और लोमड़िया डर कर भागने ..... तो जगल के जानवर धीरे धीरे बब्बर शेर के खिलाप होने लगे .....वक्त बिता तो बन्ना शेर ने जंगल में सारे जंगल के लोगो से चुनाव करने की बात रखी...और जंगल के सारे जानवरों की सहमती से कानून बनाने और राज करने के लिए राजा के चुनाव की बात रखी ........और जंगल के जानवरों को ये बात बहुत पसंद आई और उन्होंने बन्ना शेर को भगवान मान लिया .......

चुनाव आया और बन्ना शेर अब सारे जानवरों को धीरे धीरे ये बात समझाने लगा की राजा तो मुझे बनना नहीं है लेकिन मैं इस जंगल में आप के हित और सुरक्षा का ध्यान रखूँगा और मुझे लगता है की लोमडिया हमसे डरती ही और हमारी सारी बाते मानती है तो आप सभी इन लोमडियो को ही राज करने के लिए सहमती दे दे..........और भोली भली जनता उस नकली बन्ना शेर की बातो में आ कर एक बार फिर लोमडियो को ही जीता कर राज करने देती गई . अब लोमडियो ने जंगल में अपने मन के सारे कानून बना लिया जिस से की कभी भी कोई जानवर या बब्बर शेर सर न उठा सके .......

एक बार फिर जंगल में लोमडियो का राज आ गया ...... बन्ना शेर को कुछ दिनों के लिए वापस भेज कर कुछ दिन बाद लोमड़ी के असली भेष में बुला कर ईनाम दे दिया गया और जंगल में सारी सुविधाए .....और उन की संख्या भी बहुत बढ़ गई ...........अब जंगल के जानवर बेबस दुखी फिर से सारे अत्याचार सहने लगे ........ बाबर शेर दुखी लेकिन फिर भी .............. क्रमशः अगले भाग में ....

Wednesday 22 June 2011

गुजार कर उस के साथ.........



गुजार कर उस के साथ एक सुहानी सी शाम 
कुछ न कह सका तो एक कोरा कागज़ छोड़  आया 

कोशिश उस की थी बात हो पूरी मेरी
मैं एक सवाल  नया छोड़ आया 

मुमकिन है की खबर हो उस को भी बैचनी का सबब 
जो एक बात जुबा पर लाते लाते रुका और छोड़ आया 

देख सके आईना  तसल्ली से वो बेठ कर
शब्दों को मौन रखा और ख़ामोशी छोड़ आया 

मकसद मेरा भी है की सिलसिला यु ही चलता रहे 
रूह को अपनी बहुत करीब उस के छोड़ आया 

Friday 17 June 2011

कभी किसी से न कहना ...



कभी किसी से न कहना के तुझसे प्यार नहीं मुझ को 
तोडना किसी दिल को .. से अच्छा किसी दिल को बहलाना 

दायरों का भी तो कोई दायरा होता होगा 
वरना खुशबु का यु बिखर जाना मुश्किल होता .

कभी यु भी तलाशती थी  महफ़िल में मुझे उस की आंखे 
के जैसे प्यास को किसी दरिया की तलाश है 

एक हाथ पकड़ कर होता था कभी पूरी दुनिया का साथ 
अब मेरे हाथ को बस  हाथो की लकीरों से आस है   

वक्त गुजरा करता था कभी बहते हुए दरिया  की तरह 
आज मेरी फुर्सत के पास भी  सिर्फ तेरी ही  याद है ..

लक्ष्मी बाई नहीं लोगी क्या अब फिर से अवतार तुम ...





लक्ष्मी बाई नहीं लोगी क्या अब फिर से अवतार तुम .....
छल किया था जिस ने ग्वालियर में ..
सिंधिया जैसे गद्दारों से  नहीं लोगी क्या बदला हर बार तुम 

खटकते थे जो अंग्रेज तुम्हारी आँखों में 
बदल कर भेष बहु का ..जा पहुचे दिल्ली के सिहासन में 
कैसे अब कर लोगी स्वीकार तुम 

शिव बिना शक्ति के शव है बात तुम्हे भी तो ज्ञात है 
कर के शिव संकल्प कुछ संतो ने छेड़ा एक अभियान है 
उन की इस क्रांति में क्या अब नहीं डालोगी प्राण तुम .

हो रहा है आक्रमण देश - संस्कृति - धर्म पर खुल कर
ले रूप धरा  धेनु का फिर कर रही पुकार है 
क्या सह लोगी पीड़ा  माँ भारती की  इस बार तुम 

जो न ले पाओ अवतार तो बन जाओ एक बयार तुम 
दीप जला है ...उठा कर लपटे ..कर तो दुश्मनों का दाह संस्कार तुम ..

लक्ष्मी बाई हो सके तो फिर से ले लो अवतार तुम ..

१७ जून २०११ ...  दुर्गा स्वरुप लक्ष्मी बाई को कोटि कोटि नमन. 

Wednesday 15 June 2011

ख्वाहिसे ...



ये आंखे भी जाने क्या क्या बलाए  रखती है 
उस शख्स को जो कभी मेरा हो न सका ...बसाये रखती है ..

ख्वाहिस तो मेरी भी है कभी पुकारू उसे जोर से 
पर एक नाज़ुक सी कसम दिल में डर बनाये रखती है ..

एक उम्र गुजर गई न कुंदन बना.... न राख हुआ ..
ख्वाहिस  मेरे दिल में फिर भी आग जलाये रखती है..

Monday 6 June 2011

खुद का जूता खुद का सर ....ठीकरा फूटा आर एस एस पर ...


शायद आप सभी ने काग रेस का नया अभियान जूता खाओ अभियान देखा होगा ... कुछ बाते जो मेरी अल्प बुद्धि पचा नहीं पाई उस पर ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा


१. कांग्रेस के मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेंस और सुरक्षा व्यवस्था ऐसी की एक व्यक्ति फर्जी पहचान के साथ अंदर घुस गया और किसी को पता भी नहीं .. चलिए मान भी ले तो जब उस ने सवाल किया तो सारे मीडिया वालो का ध्यान तो गया होगा लेकिन किसी ने कोई आपत्ति नहीं की,,..

२ अगर आर एस एस या किसी हिदू संगठन का व्यक्ति होता तो सवाल " भा जा पा हाशिये   में चली गई " जैसा सवाल तो नहीं करता .. कोई भी व्यक्ति किसी संस्था से जुदा हो तो कम से कम उस का अपमान तो नहीं करेगा या कभी नहीं मानेगा की वो संस्था हाशिये पर चली गई...

३. जूता वो बहुत पहले भी फेक कर मार सकता था ... उस के लिए उस को पुरे वक्त तक इंतज़ार करने का धेर्य नहीं होता ...क्यों की नफ़रत करने वाले इन्सान को धेर्य तो हो ही नहीं सकता ...और अगर कोई बंदा फर्जी परिचय से घुसा है तो वह जल्दी से जल्दी अपना कार्य ख़त्म करना चाहेगा न की जनार्दन साहब को पुरे सवालो का जवाब आराम से देने देगा ..

४ जूता फेक कर भी मारा जा सकता था फिर मच में जाने की जरुरत क्या थी .....और अगर मच पर भी गया तो जूता दिखाता रहा लेकिन मारा नहीं ....वर्ना समय तो इतना था की ४ बार तो मारा ही जा सकता था... तो क्या सिर्फ ये दिखावा करने गया था...

५. जैसे ही कांड हुआ दिग्गी ने तुरंत आ कर पहला वक्तव्य  आर एस एस के नाम कर दिया ...जैसे मानो बस उस काम के लिए ही वो बेठे थे ऑफिस में .........देख कर ऐसा नहीं लगता की कोई चोर चोरी करने के बाद खुद ही चिल्लाये की चोरी मैंने नही की मैंने नहीं की.. या फिर एक छोटा बच्चा कोई गलती करने के बाद तुरंत अपना इलजाम किसी और पर लगा देता है...


अब सोचने वाली बात यह की ऐसा करने की आखिर जरुरत क्या थी ... क्या वो पत्रकारों के सवालो से बचना चाहते थे ....या पत्रकार व्वार्ता के सवालो के गोल मोल जवाब की जगह जूता कांड को मीडिया में दिखाना चाहते थे ताकि कुछ देर के लिए देश की जनता टी व्ही पर जूता कांड देखने में लग जाये और मूल मुदा भटक जाये... क्या अब इतनी शर्मिंदगी होने लगी अपने बर्बरतापूर्ण कार्य से की उन को उस का सामना करने से अच्छा खुद पर जूता उछ्लावाना पद रहा है. 


कांग्रेस के सामने तो अभी पुरे देश के लोगो के जाने कितने सवाल है और ....उच्च पद पर आसीन मौन व्रत धारण किये हुए है ......जनता हु बाकि के सवालो की तरह मेरे ये सवाल सिर्फ सवाल ही बन कर रह जायेंगे .......इन की किस्मत में जवाब नहीं ....??????????

अन्ना की गुजरात यात्रा और मोदी सरकार पर आरोप...


एक कहानी 

एक किसान को नया बैल लेना था .....गया बाज़ार ......एक अच्छा सा दिखने वाला बैल देखा ....उस के मालिक ने खूब तारीफ भी की..........किसान ने कहा मैं इस बैल को अपने साथ अपने घर ले जाना चाहता हु .......वो कल सुबह बता दूंगा की ये बैल मैं लूँगा या नहीं......बैल मालिक को आश्चर्य हुआ की रात भर में किसान कैसे बैल की परीक्षा लेगा .. खैर बैल के मालिक ने किसान को अनुमति दे दी.........

सुबह किसान बैल को ले कर वापस ले आया .....और कहा की ये बैल बहुत ही कामचोर व् आलसी है मैं नहीं रख पाउँगा .......

बैल के मालिक को बहुत आश्चर्य हुआ की रात भर में किसान कैसे जान गया की ये बैल आलसी व् कामचोर है ........बहुत मिन्नत की किसान से की बताये की कैसे जाना ...........

किसान ने बताया .........मेरे यंहा बहुत सारे बैल है .....लेकिन उन में २ बैल बहुत ही कामचोर व् आलसी है .......रात को मैं सारे बैल को खुला छोड़ देता हु ......तो इस बैल को भी खुला छोड़ दिया ..........आप का यह बैल सारे अच्छे बैल को छोड़ कर उन २ कामचोर व् आलसी बैल के साथ जा कर बेठ गया और सारी रात उन कामचोर व् आलसी बैल की संगती में ही रहा .........इस से यह बात साबित हो गई की इस बैल को मेरे बहुत सारे अच्छे बैल पसंद नहीं आये .........और ये जा कर बेठा भी तो उन २ आलसी बैल के साथ ....इस से ये बात साफ़ हो गई की यह बैल भी आलसी और कामचोर है.............

कहानी का निष्कर्ष ...............अन्ना साहब को पुरे गुजरात में मोदी सरकार का काम देखने के लिए कोई नहीं मिला और मिले भी तो अग्निवेश और मल्लिका साराभाई.... 

यंहा का निष्कर्ष आप खुद निकाल ले ................

पप्पू पार्षद की बकबक


सुबह उठा तो घर पर फरमान जारी हुआ सब्ज़ी  वाला आ नहीं रहा है तो अगर आज भोजन सिर्फ दाल के साथ करना हो पेपर पढ़े  नहीं तो बाज़ार जा कर सब्ज़ी ले आओ ...... झोला उठाया और निकल पड़ा..रास्ते में हमारे पप्पू  पार्षद काग रेसी मिल गए ....सफ़ेद कुरता पैजामा मानो  बस अभी  दिल्ली जा रहे हो केन्द्रीय मंत्री की शपथ  लेने ....... 

खैर मैंने औपचारिकता  वश  पूछ  लिया  और पप्पू भैया क्या हाल  है ...बोले मजे में ... दिख नहीं रहे हो  .. क्या करे गुप्ता जी आज कल जन सेवा से समय कहा है ... मैंने पूछा वार्ड में तो दीखते नहीं .. कहने लगे अरे नहीं जी बस दुसरे वार्ड में नालिय बनवा रहे है ...छोटे भाई के नाम से ठेका लिया है बस उस में ही लगे है......मन में मैंने सोचा अच्छी जनसेवा है ये ...सेवा का सेवा और मेवा का तो पुच्छो नहीं ... 

सवाद बढता गया ...बात बदने के लिए मैं कह दिया मौसम बड़ा अच्छा है ...कहने लगे काग रेस का राज है ...
मैंने कहा बिजली गिर गई कल बगल वाले के घर पर  .....कहने लगे पक्का विरोधी का हाथ है...

मैं मौन उन की निष्ठा देखता रहा ......सोचा इन को तो समझा नहीं सकता ..कम से कम अपने भोजन का स्वाद ही बड़ा लू ...और निकल गया सब्ज़ी लेने बाज़ार ...

सफलता के 3 सूत्र सुन्दर काण्ड के सन्दर्भ में .


सुंदरकांड किसी भी कार्य में प्राप्त होने वाली सफलता का चरित्र है ...
तुलसीदास जी ने इस कांड की चौपाई की शुरुवात जामवंत जी से की है ........चलिए इस विषय पर थोड़ी चर्चा हो जाये..

जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥
जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा । चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥

भावार्थ:-जाम्बवान्‌ के सुंदर वचन सुनकर हनुमान्‌जी के हृदय को बहुत ही भाए। हनुमान जी ने सभी वनरो से कहा - हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना.... जब तक मैं सीताजी को देखकर (लौट) न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमान्‌जी हर्षित होकर चले 



सफलता के 3 सूत्र 

१ किसी कार्य की सफलता के लिए किसी बुजुर्ग / अनुभवी /माता पिता / गुरु की सलाह एवं उन का आदेश उस कार्य की सफलता को सुद्रिड करता है ....तो जब भी कार्य करे अपने से बड़ो की सलाह या उन के कहने के अनुसार कार्य करे ... क्यों की बुजुर्ग अपने ज्ञान और अनुभव से हमारे द्वारा कार्य निर्धारित करते है ..और वही हमारे सामर्थ के अनुसार कार्य निर्धारित कर सकते है ... जाम्बवंत जी का हुनमान जी को उन की शक्ति और बल का आभास करवाना और फिर उन को जाने के लिए प्रेरित करना इस बात का सूचक है...... तो ये मने की कार्य की सफलता का पहला सूत्र .... बुजुर्ग व्यक्ति (अनुभवी / माता पिता / गुरु ) की सलाह ले कर कार्य करे...

२. किसी भी कार्य के आरम्भ में हर्ष होना ......हर्ष आत्मविश्वास और कार्य के प्रति लगन या उत्सुकता को दर्शाता है ....और बुजुर्गो की सलाह के अनुसार कार्य करे तो सिर्फ काम निपटाना ही न हो उस पर आप की लगन और आत्मविश्वास हो जो आप को हर्षित करेगी ......कभी कभी हम काम तो करते है लेकिन बड़े बेमन से ..और वो काम बनता भी नहीं .....दोष हमारा ही हो जाता है ......... तो दूसरा सूत्र कार्य का आरम्भ बड़े आत्मविश्वास और हर्षित मन से करे...

३. किसी भी कार्य को करने के साथ साथ राम के प्रति लगन और पूर्ण विश्वास का होना ......कभी कभी हम सलाह ले कर भी कार्य करते है बहुत आत्मविश्वास के साथ भी करते है लेकिन हमारे मन का संदेह ....प्रभु या अपने अपने इष्ट के प्रति संदेह आप को दिग्भ्रमित कर सकता है ..........तो तीसरा सूत्र कोई भी कार्य करे ..प्रभु पर पूर्ण आस्था हो ...और उन के प्रति समर्पण ...

रामायण जी का पाठ और श्री हनुमान जी के दर्शन फल से जो मेरी समझ से है मैंने लिखा है .........या पूर्ण नहीं ...क्यों की मैं भी अभी पूर्ण नहीं हु ...आप सभी इस दिशा में और भी चर्चा करे तो शायद मैं भी कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकू