Friday 17 June 2011

कभी किसी से न कहना ...



कभी किसी से न कहना के तुझसे प्यार नहीं मुझ को 
तोडना किसी दिल को .. से अच्छा किसी दिल को बहलाना 

दायरों का भी तो कोई दायरा होता होगा 
वरना खुशबु का यु बिखर जाना मुश्किल होता .

कभी यु भी तलाशती थी  महफ़िल में मुझे उस की आंखे 
के जैसे प्यास को किसी दरिया की तलाश है 

एक हाथ पकड़ कर होता था कभी पूरी दुनिया का साथ 
अब मेरे हाथ को बस  हाथो की लकीरों से आस है   

वक्त गुजरा करता था कभी बहते हुए दरिया  की तरह 
आज मेरी फुर्सत के पास भी  सिर्फ तेरी ही  याद है ..

4 comments:

  1. दायरों का भी दायरा ...वाह

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  2. वाह वाह अच्छा ही है कि तुकबन्दी से दूर रहे आप कविता सार्थक बनी है ।

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  3. Wah .. dil ko chu gayi kavita...

    वक्त गुजरा करता था कभी बहते हुए दरिया की तरह
    आज मेरी फुर्सत के पास भी सिर्फ तेरी ही याद है ..

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  4. waha bhai...sach batu to dil aaj ye kavita padd kar ghabra sa gaya hai...kitna dard hai na tumari iss kavita mein ..sachhi..

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