Wednesday 28 September 2011






एक अरसा हुआ खुद को हसते हुए देखे 
चलो आज बचपन के कुछ खेल खेले हम 

जमाना बदल गया पर दस्तूर अब भी वही तो पुराना है
चलो आज किसी से रूठे .और किसी रूठे हुए को मना ले हम 

कुरेद के दिल के जख्मो को अब जान लो कुछ न होगा
आओ कुछ खेल खेले बचपन के  और जख्मो को सी ले हम 

टूटे खिलौना कोई और बच्चे का मचल कर रोना
चलो आज दिल के कुछ दाग यु ही धो ले हम

Tuesday 27 September 2011







जो भगत सिंह माँ भारती के गौरव के लिए हसते हसते फासी में चढ़ गए
आज देख माँ भारती की दुर्दशा मेरे सपने में आकर फूट फूट कर रोते है

................

मत देखो मेरी ओर
अपनी यु नम आँखों से
क्यों की नहीं है मेरे पास
भगत सिंह तुम्हारे सवालो का कोई जवाब

रक्त प्रवाहित है अब भी मेरी रगों में
प्राण अभी भी है शेष
फिर क्या कहू तुम से
ये तुम्हारी जयंती मनाना
यु माला पहना कर तुम्हारा महिमा मंडन
जानता हु ये तो नहीं था कभी तुम्हारा उद्देश्य

क्या करू इस देश में अब भी
भाषा गाँधी वाद की कायरता है
वन्दे मातरम अब सांप्रदायिक बना देश में
हिन्दुओ पर छाई धर्मनिरपेक्षता की काली छाया है
विदेशियों का नमक खाने वाले लोगो ने
सारे देश में अब सत्याग्रह का जाल फैलाया है

भगत सिंह मैं क्या जवाब दू तुम को
मौन हु ....आँखों में आंसू है ....हाथ काप रहे क्रोध से ...
फिर भी माँ भारती का गौरव अब तक
हम ने कहा लौटाया है .........


 

Sunday 18 September 2011

बेटिया

बेटिया
बीज की तरह ही तो होती है

१..........
चाहिए उन्हें भी विश्वास की थोड़ी सी जमीन
लाड दुलार की थोड़ी सी फुहार
खाद थोड़ी सी शिक्षा की ......
फिर देखो कैसे लहरा सी जाती है
तैयार सतत .........
समाज घर परिवार के
पोषण को ............

२...................
पिस जाती है कभी
रीती रिवाज के पाटो में
व्यग्तिगत स्वार्थ और लालच ने
दल दिया है उन को अक्सर ही
और खो देती है सम्भावनाये असीम
अपने को साबित करने की