Thursday 23 February 2012

नव गाथा





हे विष्णु हे नाथ जगत के
एक बार फिर सुदर्शन चलाना होगा


घूम रहे थे भोले भंडारी कंधे पर ले
मृत सती कि काया
सृजन रुका था विनाश टला था
हर दुष्टों का संघार रुका था
तुम ही तो थे जिस ने चला कर चक्र
छिन्न भिन्न की सती की काया

हम मानव ने अब सिर्फ ग्रन्थ पढ़ा
और घूम रहे है अपने कंधो पर ले
अपने ही मृत संस्कारो अहिंसा की काया
बढ़ रही है फिर देश में दुष्टों की छाया
हे जनार्दन अब देर नहीं करो
चला कर चक्र छीन भिन्न करो फिर से
हमारे इन कुंठित मन की काया

शंख नाद अब करना होगा
क्रांति का एक नया सूत्रपात करना होगा
रन चंडी अब माता - बहने बने
हर देश भक्त के हाथो में हो अब जहर का प्याला
केश धुले अब माँ भारती का दुष्टों के रक्त से
बच्चा बच्चा बोले हर हर महादेव का नारा

स्थापना हो माँ भारती की निज आसन पर
लिखे इतिहास फिर हिन्दू की गौरव गाथा

हे गदा चक्रधारी नाथ जगत के
एक बार फिर सुदर्शन चलाना होगा

1 comment: